Aryan Pankaj

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साहित्य में स्त्रियों की महानता हमारे लेखकों और कवियों की धूर्तता से ज्यादा कुछ नहीं है

दुनिया में जितना महिमामंडन एक स्त्री का किया गया है उतना शायद ही किसी और का किया गया हो। और स्त्रियों में भी यह सिर्फ प्रेमिकाओं और माओं के लिए ही किया गया। अगर इन लेखकों और कवियों की माने तो यह समस्त सृष्टि अगर चलायमान है तो उसके पीछे सिर्फ स्त्रियों का ही योगदान है। इनकी रचनाओं को सुनकर पढकर लगता है कि पुरुष इस दुनिया का सबसे नालायक प्राणी है, फिर चाहे वह एक पिता के रूप में जीवन पर्यन्त संघर्ष करता रहे या फिर एक पति-प्रेमी के रूप में पत्नी-प्रेमिका की हर ख्वाहिश को अपनी हर जरूरत से adhik महत्व देता रहे।

स्त्रियों का ये आवश्यकता से अधिक महिमामंडन इन लेखकों और कवियों की धूर्तता को प्रदर्शित करता है। स्त्री जाति के प्रति अपनी इस अंधभक्ति के कारण इन लेखकों और कवियों को कभी पुरुष का संघर्ष और त्याग दिखाई ही नहीं दिया। जबकि एक लेखक या कवि से इतनी अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि वह तटस्थ रहे।

इनकी रचनाओं में स्त्रियों की कथित महानता का मूल आधार अगर देखें तो वह सिर्फ उनकी मां बनने की क्षमता है। यह पूर्णतः प्राकृतिक है। स्त्रियों ने इसे चुना नहीं है। सृष्टि में पाई जाने वाली हर मादा में यह प्राकृतिक रूप से है। ऐसे में सिर्फ इस आधार पर अपनी हर रचना में स्त्री को महान सिद्ध कर देना धूर्तता नहीं तो और क्या है?

दूसरी ओर पुरुषों की बात करें तो यह उनके तो वश में नहीं है ना कि वे संतान को जन्म नहीं दे सकते। हालांकि वह अपने जीवन के हर क्षण में अपनी संतान की बेहतरी के लिए ही प्रयास करता रहता हैI और पुरुष का यह संघर्ष का समय किसी भी परिस्थिति में एक स्त्री के 9 महीनें के गर्भ काल से अधिक ही होता है। यहां तक कि एक पुरुष अपनी स्त्री के गर्भधारण करने के साथ ही अपनी संतान के भविष्य के बारे में सोचना आरंभ कर देता है। यानि कि गर्भ के उन 9 महीनों में भी पुरुष किसी भी तरह से निश्चिंत नहीं बैठा होता है।

मेरी इन बातों का मतलब किसी भी प्रकार से यह नहीं है कि एक संतान के लिए स्त्री का संघर्ष अथवा उसका योगदान किसी भी रूप में कम होता है। लेकिन हमारे लेखकों और कवियों के इस एकतरफा महिमामंडन के कारण पुरूष के एक पिता या पति या प्रेमी के रूप में संघर्ष को कम क्यों आंका जाए?

प्रश्न यह है कि एक प्रकृति प्रदत्त क्षमता के आधार यह स्त्रियां पुरुषों से श्रेष्ठ कैसे कही जा सकती हैं? हाँ, उन्हें श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए सैकडों अन्य कारण गिनाएं जा सकतें है लेकिन फिर उसी अनुपात में स्त्रीस्वभाव कमियों को भी तो देखना होगा। एक पुरुष जीवन भर श्रम करता है और अपने पारिश्रमिक से अर्जित संपति को सहर्ष उस स्त्री को समर्पित कर देता है जिसके लिए हमारे धूर्त कवि और लेखक दावा करते हैं कि जिस दिन स्त्रियों ने अपने काम का हिसाब मांग लिया उस दिन मानव इतिहास की सबसे बडी चोरी पकडी जाएगी।

क्यूँ भई? ये हिसाब मांगने का हक तुमने सिर्फ स्त्रियों को किस हक से दे दिया? क्या पुरुष हक नहीं मांग सकते कि सदियों से अपने श्रम और संघर्षों की बदौलत हम स्त्रियों की संतानों का पालन पोषण करते आये हैंI अगर इन धूर्त लेखकों और कवियों के तर्क के आधार पर ही सोचा जाए तो पुरुष ऐसे सैकडों कारण कथित हक मांगने के लिए गिना सकता है। और फिर उनके जवाब में स्त्रियां भी सैकडों अन्य कारण ले आएंगी।

तो यह साफ है कि प्रगतिशीलता के आधार पर इन कथित नारीवादी लेखकों और कवियों ने अपनी धूर्तता का ही प्रदर्शन किया है। इसका कारण क्या रहा होगा वह तो मैं नहीं जानता, लेकिन यह तो तय है कि एक पुरुष का संघर्ष किसी भी मायनें में एक स्त्री से कम नहीं होता, संतान के पालन और पोषण में पिता का योगदान किसी भी मायनें में कम नहीं होता और एक पति या प्रेमी का अपनी पत्नी या प्रेमिका के लिए त्याग किसी भी मायनें में उससे कम नहीं होता।