Aryan Pankaj

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प्राण प्रतिष्ठा के विरोध में वामपंथी गिरोह द्वारा साझा की जा रही प्रस्तावना अपने आप में असंवैधानिक है

500 वर्षों के संघर्ष और प्रतीक्षा के बाद भगवान श्री राम अपने धाम पधार चुकें है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस मौके पर राम लला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा व मंदिर का लोकार्पण किया गया। आज जिस तरह का उत्साह व भाव रामभक्तों में देखा गया वह अतुलनीय है और इसे शब्दों में बयान कर पाना लगभग असंभव है।

लेकिन इसके अलावा एक और चीज है जिसे शब्दों में बयां कर पाना संभव नहीं है। वह है इस मौके पर वामपंथियों का कुंठित प्रलापI आज सुबह से ही जिस तरह का प्रलाप वामपंथी लिबरल सेकुलर जनों द्वारा किया जा रहा था वह अपने आप में इस वर्ग की धूर्तता की पराकाष्ठा को दर्शा रहा था। वामपंथियों के स्थान विशेष में जिस तरह का प्रज्ज्वलन देखा गया ऐसा शायद ही आजाद भारत में पहले कभी देखा गया हो।

एक चीज जिसने मेरा सबसे ज्यादा ध्यान खींचा वह था वामपंथी गिरोह द्वारा संविधान की प्रस्तावना को सोशल मीडिया पर शेयर किया जाना। अब प्रस्तावना को शेयर करके वामपंथी जमात क्या साबित करना चाहती थी ये तो राम जाने, लेकिन प्रस्तावना का जो संस्करण साझा किया जा रहा था वह 42वें संविधान संशोधन के बाद वाला संस्करण था।

मूल संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष, समाजवादी और अखंडता शब्द सम्मिलित नहीं थे। यहां तक कि संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर भी संविधान में सेकुलर जैसे शब्दों को शामिल किए जाने के विरोधी थे। ऐसे में ये तीन शब्द प्रस्तावना में आए कैसे यह जानना जरूरी हो जाता है।

दरअसल ये तीनों शब्द संविधान की प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन के द्वारा जोडे गए थे। हालांकि संसद के पास संविधान को संशोधित करने की शक्ति है, लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है कि 42वां संविधान संशोधन तब किया गया था जब देश में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू था और सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे सभी सांसद मीसा जैसे कानूनों के तहत या तो जेल में बंद थे या फिर भूमिगत थे।

जाहिर है इस स्थिति में किसी भी तरह की बहस या फिर विरोध की गुंजाइश ही नही थी। जब 42वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया तब संसद में केवल इंदिरा गांधी की पार्टी के सांसद और आपातकाल का समर्थन कर रहे वामपंथी सांसद ही थे। ऐसे में एक तरह से देखा जाए तो यह संविधान संशोधन और इसके द्वारा प्रस्तावना में जोडे गए थे तीन शब्द देश थोपे गए प्रतीत होते हैं। वहीं विपक्षी सांसदों की अनुपस्थिति के कारण यह तो निश्चित ही है कि इस संविधान संशोधन की प्रकिया ही असंवैधानिक थी। यही कारण है कि इस संशोधन को देश के इतिहास में सबसे विवादास्पद संविधान संशोधन माना जाता है।

प्रस्तावना में इन महत्वपूर्ण बदलावों के अलावा इस संशोधन के द्वारा संविधान में कई अन्य बदलाव भी किए गए थे। इसके द्वारा सर्वोच्च न्यायालय समेत अन्य न्यायालयों की शक्तियां सीमित कर दी गई। प्रधानमंत्री कार्यालय को अभूतपूर्व रूप से शक्तिशाली बनाया गया और नागरिक अधिकारों में कटौती करने के साथ साथ मूल कर्तव्यों को भी संविधान में जोडा गया। इन सब बदलावों के बारे में चर्चा फिर कभी, लेकिन बाद में जनता पार्टी की सरकार के द्वारा क्रमशः 43वें और 44वें संशोधनों के द्वारा इस संशोधन के बहुत से प्रावधानों को वापस ले लिया गया। हालांकि उनका वादा आपातकाल के पूर्व की स्थिति वापस लाने का था।

खैर, इतना तो स्पष्ट है कि 42वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान में जो कुछ भी जोडा या घटाया गया वह प्रक्रियागत रूप से असंवैधानिक है। लेकिन मौकाखोर वामपंथी गिरोह जो आजकल संविधान की सबसे ज्यादा रट लगाता है उसने उस समय न केवल सरकार का समर्थन किया था अपितु आज भी बेशर्मों की तरह इस असंवैधानिक प्रस्तावना को अपनी कुंठा में साझा किए जा रहा है।